केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को लोकसभा को बताया कि बलवंत सिंह राजोआना को कोई माफी नहीं दी गई है, जिन्हें 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था।
प्रश्नकाल के दौरान, पंजाब से कांग्रेस सदस्य रवनीत सिंह बिट्टू ने शाह से जवाब मांगा कि राजोआना को क्यों माफ किया गया। रवनीत सिंह बिट्टू बेअंत सिंह के पोते हैं। गृहमंत्री ने बिट्टू को कुछ मीडिया रिपोर्टों से भ्रमित न होने के लिए कहा और बोला कि, “कोई माफ़ी नहीं दी गयी”।
सितंबर में, केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने राजोआना की मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने के केंद्र सरकार के फैसले की घोषणा की थी। अधिकारियों ने कहा था कि यह निर्णय गुरु नानक देव के 550 वें जन्मदिन के अवसर पर एक “मानवीय भाव” के रूप में लिया गया था।
पंजाब के एक पूर्व पुलिस कांस्टेबल राजोआना को पंजाब के नागरिक सचिवालय के बाहर एक विस्फोट में शामिल होने के लिए दोषी ठहराया गया था जिसमे 1995 में बेअंत सिंह और 16 अन्य लोग मारे गए थे।
शिरोमणि अकाली दल (SAD), जो नरेंद्र मोदी सरकार का हिस्सा है, ने कहा था कि मौत की सजा को बदलने का निर्णय सिख समुदाय की “आहत” भावनाओं पर मरहम लगाने का काम करेगा, जो सिख समुदाय ने उन काले दिनों के दौरान महसूस किया जब पंजाब को आतंकवाद में धकेल दिया गया था। केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल केंद्रीय मंत्रिमंडल में SAD की प्रतिनिधि हैं।
एक विशेष अदालत ने जुलाई 2007 में बेअंत सिंह हत्याकांड मामले में राजोआना को एक अन्य आतंकवादी जगतार सिंह हवारा के साथ मौत की सजा सुनाई थी।
राजोआना, एक बैक-अप मानव बम था, जिसका प्रयोग पहले वाले बब्बर खालसा आतंकवादी मानव बम द्वारा कांग्रेसी नेता की हत्या करने में विफल होने पर किया जाना था। राजोआना को 31 मार्च 2012 को फांसी दी जाने वाली थी।
हालांकि, शिरोमोनी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, सिख धार्मिक संस्था द्वारा मर्सी पेटिशन के बाद केंद्र में तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा 28 मार्च, 2012 को फांसी पर रोक लगा दी गई थी। शिरोमणि अकाली दल, जो उस समय पंजाब में सत्ता में था, ने उसकी फांसी के खिलाफ अभियान चलाया। राष्ट्रपति ने इस पर निर्णय लेने के लिए गृह मंत्रालय से अपील की थी। तब से यह याचिका गृह मंत्रालय के पास लंबित थी।